BHARASPATI PUJA
संसारकी सृष्टि करनेकी इच्छासे ब्रह्माने मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा आदि मानस-पुत्र उत्पन्न किये।
उनमें अङ्गिराके एक आङ्गिरस नामक पुत्र हुए। वे शैशवावस्थामें ही बडे बद्धिमान और विद्वान् थे।
वे सब शास्त्रतत्त्व जाननेवाले, वेदोंके पारंगत, बडे रूपवान्, गुणवान् एवं शील-सम्पन्न थे।
उन्होंने भगवान शंकरकी आराधना प्रारम्भ की। परमपावनी काशी नगरीमें शिवलिङ्गकी स्थापना
कर वे घोर तपस्या करने लगे।तपस्या करते हुए उनके जब दस हजार वर्ष बीत गये, तब जगदीश्वर
महादेव उस लिङ्गसे प्रकट होकर कहने लगे कि 'मैं तुम्हारी तपस्यासे परम प्रसन्न हूँ, अपना अभीष्ट वर माँगो।।
अपने सामने उत्कृष्ट तेजोमय जटाजूटधारी, परम कल्याणकारी भगवान् शंकरकी मूर्ति देखकर वे प्रसन्न-वदनसे
स्तुति करने लगे–'हे देवदेव जगन्नाथ ! आप त्रिगुणातीत, जरा-मरणसे रहित, त्रिजगन्मय, भक्तोंके उद्धार
करनेवाले और शरणागतवत्सल हैं। आपके दर्शनोंहीसे मैं कृतकृत्य हो गया। हूँ। मेरी समस्त कामनाएँ
पूर्ण हो गयीं।' आङ्गिरसकी ऐसी स्तुति सुनकर भगवान् आशुतोषने और भी प्रसन्न होकर उन्हें अनेक वर दिये। उन्होंने कहा“हे आङ्गिरस ! तुमने बृहत् (बड़ा)
उनमें अङ्गिराके एक आङ्गिरस नामक पुत्र हुए। वे शैशवावस्थामें ही बडे बद्धिमान और विद्वान् थे।
वे सब शास्त्रतत्त्व जाननेवाले, वेदोंके पारंगत, बडे रूपवान्, गुणवान् एवं शील-सम्पन्न थे।
उन्होंने भगवान शंकरकी आराधना प्रारम्भ की। परमपावनी काशी नगरीमें शिवलिङ्गकी स्थापना
कर वे घोर तपस्या करने लगे।तपस्या करते हुए उनके जब दस हजार वर्ष बीत गये, तब जगदीश्वर
महादेव उस लिङ्गसे प्रकट होकर कहने लगे कि 'मैं तुम्हारी तपस्यासे परम प्रसन्न हूँ, अपना अभीष्ट वर माँगो।।
अपने सामने उत्कृष्ट तेजोमय जटाजूटधारी, परम कल्याणकारी भगवान् शंकरकी मूर्ति देखकर वे प्रसन्न-वदनसे
स्तुति करने लगे–'हे देवदेव जगन्नाथ ! आप त्रिगुणातीत, जरा-मरणसे रहित, त्रिजगन्मय, भक्तोंके उद्धार
करनेवाले और शरणागतवत्सल हैं। आपके दर्शनोंहीसे मैं कृतकृत्य हो गया। हूँ। मेरी समस्त कामनाएँ
पूर्ण हो गयीं।' आङ्गिरसकी ऐसी स्तुति सुनकर भगवान् आशुतोषने और भी प्रसन्न होकर उन्हें अनेक वर दिये। उन्होंने कहा“हे आङ्गिरस ! तुमने बृहत् (बड़ा)
तप किया है, इसलिये तुम इन्द्रादि देवोंके पति तथा ग्रहोंमें पूज्य होओगे और तुम्हारा नाम ‘बृहस्पति' होगा। तुम बड़े वक्ता और विद्वान् हो, इसलिये तुम्हारा नाम ‘वाचस्पति' भी
होगा। जो प्राणी तुम्हारे द्वारा स्थापित इस लिङ्गकी आराधना | करेगा और तुम्हारे द्वारा की गयी स्तुतिका पाठ करेगा उसे मनोवाञ्छित फल मिलेगा तथा ग्रहजन्य कोई बाधा भी उसे पीड़ित नहीं करेगी।'
इस प्रकार अनेक वर देकर भगवान् शंकरने ब्रह्मा, इन्द्र 5 आदि सभी देवताओंको बुलाया और ब्रह्माजीसे कहा कि ।' ‘बृहस्पतिजीको सभी देवोंका आचार्य बना दो।' ब्रह्माजीने उसी से समय बृहस्पतिका देवाचार्यपदपर अभिषेक कर दिया। उस ने समय देवताओंकी दुंदुभियाँ बजने लगीं। इस प्रकार भगवान् से शंकरके अनुग्रहसे आङ्गिरसने वह पद पाया, जिससे बढ़कर और स्वर्गलोकमें कोई दूसरा पद हो ही नहीं सकता। या उनके द्वारा स्थापित बृहस्पतीश्वरके पूजनसे प्राणी ति प्रतिभासम्पन्न हो जाता है तथा उसे अभीष्ट-सिद्धिकी प्राप्ति कि होती है और गुरुलोकमें वह प्रतिष्ठित होता है।
The desire to create the world was created by Brahma Maarichi, Atri, Aghira etc. Manas-son. Among them, Aghira had a son named Aggirus. He was very educated and scholarly in infancy. They were all those who were well-versed in science, learned from the Vedas, and were very rich, virtuous and virtuous. They started the worship of Lord Shankar. By establishing Shivhalguni in Kashi Nagar of Paramapavani, they started doing austerity.
When ten thousand years passed, he performed penance, Jagadishwar Mahadev appeared in the lyrics and said, 'I am very pleased with your penance, ask for your purpose. Seeing the excellent majestic zodiacal, the ultimate welfare god Shankar idol in front of him, he started praising Goddiving Jagannatha- "Devdev Jagannath!" You are tripled, unkept, triumphant, and devotees of the devotees. I have been thankful for your views. Am All my wishes were fulfilled. By listening to such praises, Lord Ashutosh too pleased and gave them many blessings. He said, "Oh! You have done great (great)
penance, therefore you will be worshiped in the haters of Gods and in the planets, and your name will be 'Jupiter'. You are a great speaker and a scholar, so your name will be 'Vachaspati' too
. The creature which you have established this song worshiped by you. He will read the scriptures written by you and will get the desired result and will not suffer any pestilence.
In this way, Lord Shankaran called Brahma, Indra 5 and all Gods and gave it to Brahmajis. 'Make Jupiterji all the deacons of Acharya'. Brahma ji gave him anointing the time of Thursday's Deority. He started singing at the time of the gods. Thus, by the grace of God Shankara received such a post, which could not be increased and there could be no other post in heaven. Or by the worship of Jupiterashwar, by him or her, the creature becomes talented and it is the result of achievement and he is respected in Gurlok.
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