भगवती सावित्रीकी शिव-पूजा ।


भगवती सावित्रीकी शिव-पूजा ।
पितामह ब्रह्माकी पत्नी देवी सावित्रीने लोकोपकारके लिये दर्शन देते हैं। आपका दर्शन करनेके अनन्तर प्राणीको पुनर्जन्म
प्रभासक्षेत्रमें भगवान् शंकरके लिङ्गकी स्थापना कर उनकी एवं मरणका भय नहीं रहता और फिर उसको कुछ जानना भी
विधिवत् पूजा की। इसके बाद इन्द्रियोंको वशमें करके अन्न- शेष नहीं रह जाता।। जलतक त्यागकर केवल वायुका आश्रय ले
वे भगवान् इस प्रकार सावित्रीकी स्तुति सुनकर और उनके आशुतोषके ध्यानमें तल्लीन हो गयीं।
| अन्तःकरणका अभिप्राय जानकर ब्रह्मेश्वर भगवान् शिव | सावित्रीकी तपस्यासे प्रसन्न होकर हाथमें त्रिशूल लिये बोले–‘जो मनुष्य
पूर्णिमा तिथिको चन्दन, पुष्प आदि दयासागर भगवान् शिव प्रकट हुए। अपने अभीष्ट देवका उपकरणोंसे तुम्हारे द्वारा स्थापित
इस शिवलिङ्गका विधिवत् । दर्शनकर सावित्रीने पुलकित होकर उन्हें प्रणाम किया और स्तुति पूजन करेगा । उसको मैं उसके
मनचाहे वरदान दूंगा। अबसे करने लगीं। वे बोलीं-'हे देव ! यह जगत् आपसे उत्पन्न मैं अपने अंशसे इस लिङ्गमें निवास करूंगा।
इसका पूजन होता है और अन्तमें आपहीके द्वारा नष्ट भी हो जाता है। आप करनेवाला महापातकी होता हुआ भी सब पातकोंसे छूट
सनातनरूप हैं। सत्य कामनावाले सज्जन पुरुषोंके लिये आप जायगा और अपनी सारी कामनाएँ पूर्ण कर साक्षात् शिव हो
ही उत्तम लोक हैं। आप ही मुक्त पुरुषोंके लिये अपवर्ग-रूप जायगा।' यह वरदान देकर शिवजी अन्तर्धान हो गये और | और आप ही
आत्मज्ञानियोंके लिये कैवल्यरूप हैं। जो प्राणी सावित्रीजी ब्रह्मलोकको चली गयीं। | भक्तिपूर्वक आपकी शरणमें जाता है, उसे आप
अपना दर्शन देते हैं। आपको दर्शन करनेके अनन्तर प्राणीको  मरणका भय नहीं रहता और फिर उसको कुछ
शेष नहीं रह जाता।' -
इस प्रकार सावित्रीकी स्तुति सुनकर और
उनके अन्तःकरणका अभिप्राय जानकर ब्रह्मेश्वर भगवान् ।
बोले-‘जो मनुष्य पूर्णिमा तिथिको चन्दन, पुष्प आदि उपकरणोंसे
तुम्हारे द्वारा स्थापित इस शिवलिङ्गका विधिवत पूजन करेगा ।
उसको मैं उसके मनचाहे वरदान दूंगा।
अब मैं अपने अंशसे इस लिङ्गमें निवास करूंगा।
इसका पूजन करनेवाला महापातकी होता हुआ भी सब
पातकोंसे छु जायगा और अपनी सारी कामनाएँ पूर्ण कर
साक्षात् शिव =
जायगा।' यह वरदान देकर शिवजी अन्तर्धान हो गये हैं
सावित्रीजी ब्रह्मलोकको चली गयीं।

Bhagwati Savitribi Shiva-Pooja
Datta Savitri, wife of goddess goddess Brahma, gives a glimpse of the philanthropist. In order to see the non-existent creatures of your life, they do not fear the death of their Lord Shiva by establishing the link of Lord Shankar and then knowing something about it also duly worshiped. After this, there is no remaining food left over by controlling the senses. After sacrificing the water tank and taking only the Vaayaka shelter, Lord Swaminarayan was thus engrossed in listening to the praises of Savitri and in his Ashutosh's meditation.
| Knowing the intersection of Lord Krishna Lord Brahma. Pleased with the penance of Savitri, he said in a trilogy at hand- "The man who completed the full moon day, Lord Krishna, Lord Rama and Dasasagar Lord Shiva appeared. This Shivalinga duly established by you with your intended Devka devices Dasarshan Savitri worshiped them and worshiped praising them. I will give him a blessing for him. Started doing now They said, 'God! I will reside in this article from my part this world will be yours. It is worshiped and eventually destroyed by yourself. Even if you do it, you are free from all sins. You will go for the gentlemen of truth, and you are the best people when you fulfill all your wishes and become an intelligent Shiva
. You will become an epidemic for free men. ' By giving this boon, Shiva inscribed and And you are the only celibacy for the enlightened ones. The creature who went to Savitriji Brahmolko. | Devotionally goes to your shelter, you give your vision to him. You do not have to fear the eternal life of seeing, and thenhim
there is no balance left to. ' - By
listening to the praise of Savitri and thus knowing the intentions of Lord Brahma Lord God. Speaking - 'The Man will complete this Shivalinga duly worshiped by you from the full moon goddess Chandan, flowers etc. I will give him a blessing for him. Now I will reside in this section with my part. The worshiper, who is worshiping him, will also be touched by all the sins and will fulfill all his wishes and become pure
. By giving this boon, Shivaji has become inestimated. Savitriji went to Brahmokko.




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