महर्षि वसिष्ठर्क Shiv Pooja- formation of अचलेश्वर नामक लिङ्ग
ॐ नमः शिवायै च
Maharishi Vashisht was a great Maharishi. He was blessed with the blessings of “Braham gyan” (ब्रहावर्चस , universal knowledge) and supernatural power of Lord Shankar(Supreme power of universe). He kept a cow named “Nandini” in his ashram. Cows was more beloved and he could have done all for her protection and service. She Usually travel or roam in forest and came back to ashram(Home of Vashisht) by the end of day. One day she went a few miles away from the ashram. There was a big pit in the earth. Nandini was on the coast of the reservoir. At the same time, she slip of fell into that hole.It was evening time. Every day Nandini used to reach the ashram before sunset. Maharshi Vashishth got that she did not even come that night. He become worried and he went out to find her. Looking for her, he reached near the same pit. The sound of Cow was appearance and that was heard by Maharishi. Vasishtha pray to Saraswati river to filled pit with water. Nandini came out and along with Maharishi went to the Ashram . The Maharishi thought that pit is harmful to the life of many creatures and many creatures may fall into this and will face death. So it is absolutely necessary to fill it up. From this thought he went to the mountain ranges Himalayas. The Himalayas were very pleased with the arrival of the Maharishi , and he lovingly welcomed him. And said 'God! Today, with the touch of these holy steps, this country became sacred and my life became successful. Even the highest worship of God, like you, is not the arrival of Maharishi to ordinary. Please Order my worthy service.All of my devoted devotional service are devoted to you. After hearing this humble words Maharishi Vasishtha, pleased to told them the story of the Pit and how pit is danger to other life. The Himalayas said that 'I am mountain ready to send the, but what is the solution to go there? Earlier, there were the weather of the mountains and they can fly wherever they wanted, but now the lord indrapa had cut all the weather so that we can not go anywhere. It is impossible to reach the mountain here in such a situation. It ok ! And Said but a solution can work. It is that your Nandivardhana, a son named Tumud, is a friend, he has the power to fly. If he wishes, he would reach Nandivardhan near his ashram in a moment. If you have me faith in, send it there without any kind of grief. The Himalayas got into big trouble. One side fear of lossing only a son was hiding and on another side we was afraid of anger of Maharishi . In the absence of sons, how to live
happily, he was concerned about this matter. But along with them, he also feared that even though Vasishtha would not be cursed by the oath of disobedience and curse. He ordered the son to go to the Vasishtha but son requested, that country is very bad. There were no tree, no fragrant flowers , no river and no sweet fruits. Fierce Coal,Bhil etc. evil castes reside in that province. The most important thing is that leaving the service of your and going to a different place. I would face lot of trouble. Therefore, keep me in your own protection.
Vasishthaji said - 'Nandivardhan! Do not worry, with power of prayer , that country will also blessed with pleasant tree, flowers and fruitful trees, countless birds who have a charming voice. At that time, different species of animals will come and reside in that country. I will strengthen the region by strengthening my Lord Shiva with the help of
my penitent, that the number of thousands of people from all the provinces of Sage will come here and make their will birth successful. There will be habitation of all the Gods.
Nandivardhan was happy to hear those words and he reached the ashram with the help of feathers. Urudachal also left with Nandivardhan and both mountains was very pleased and so 'Maharsh . 'Maharsh said I am very happy with your favor. Mountain said, 'Maharsh! If you are happy with me, then emphasize that the fertility of this purely throughout year and
water fodder should be so holy , that humans received the ultimate worship by bathing in it.
If a woman also takes a bath in her, then she should get a son. Vasishthaji said, 'It will be the same'. Accordingly, Nandivardhan requested that you stay here all along and this name is known as 'Tumput'. Vasishthaji blessed the same mountain by giving these blessing and resided in madeashramit with the Goddess Arundhati. With the his effect of penitentiary, he brought the Gomti river there, in which the taken to a grave sin for bathing man is. In the month of the month, the person donates the sesame in the bath, and for those years, the heaven enjoys supernatural pleasures.
Vasishthaji was not satisfied with the prosperity and glory of that place, and the
province seemed like a desert without the residence of Goddess Bhagwan Shiva. The country where there is no temple of God. That is why Vasishthaj began to meditate of LORD SHIVA. For hundred years, he only did the diet of fruits. For two hundred years, only eating dry leaves Spent only for five hundred years and drinking water for one thousand years and Goddess only
worshiping. Then Lord Shankar was pleased with him. At that time, beautiful Shivling appeared in between of the two mountain. Seeing him, Vasishthaji was surprised and they started praising him in many ways. From the same lingam, the voice came out that 'O Muni! I know all your desires. From now on I will always live in Shiv Ling. Its | By bathing in the Muddakini river,people get rid of their sins. And Place is Said to be “Achaleshwar”
Many pilgrims and Gods came here to fulfill all their desires.
महर्षि वसिष्ठर्क महर्षि वसिष्ठ एक महान् महर्षि हो गये हैं।
उन्हें ब्रहावर्चस और अलौकिक शक्ति भगवान् शंकरके अनुग्रहसे
ही मिली थी। वे भगवान् महेश्वरकी आराधनामें कठोर तप किया करते थे।
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह–इन पाँचों यमों तथा शौच,
संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान—इन पाँचों नियमोंका
वे यथाविधि पालन करते थे। प्रातःकाल और सायंकालके समय अग्निहोत्र
करनेका उनका नियम था । यही अग्निहोत्र-विधि पूरी करनेके लिये
वे नन्दिनी नामकी गौको अपने आश्रममें रखते थे। उन्हें यह गौ प्राणोंसे भी
अधिक प्रिय थी और इसकी रक्षा तथा सेवाके लिये वे सब कुछ कष्ट उठा सकते थे।
इसी गौके लिये उनका विश्वामित्रसे चिरकालतक युद्ध होता रहा। । सुरधेनु नन्दिनी
कभी बाँधी नहीं जाती थी। उसे जब भ्रमण करनेकी इच्छा होती तो वनमें जाकर
घूम-घाम आती ।। एक दिन वह आश्रमसे भ्रमण करनेके लिये कुछ दूर निकल गयी ।
वहाँ एक बड़ा गड़ा था। उस गड्की गहराईका पता नहीं लगता था। नन्दिनी उस
जलाशयके तटपर चर रही थी। उसी समय पैर फिसलनेसे वह गड्के जलमें गिर पड़ी।
उन्हें ब्रहावर्चस और अलौकिक शक्ति भगवान् शंकरके अनुग्रहसे
ही मिली थी। वे भगवान् महेश्वरकी आराधनामें कठोर तप किया करते थे।
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह–इन पाँचों यमों तथा शौच,
संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान—इन पाँचों नियमोंका
वे यथाविधि पालन करते थे। प्रातःकाल और सायंकालके समय अग्निहोत्र
करनेका उनका नियम था । यही अग्निहोत्र-विधि पूरी करनेके लिये
वे नन्दिनी नामकी गौको अपने आश्रममें रखते थे। उन्हें यह गौ प्राणोंसे भी
अधिक प्रिय थी और इसकी रक्षा तथा सेवाके लिये वे सब कुछ कष्ट उठा सकते थे।
इसी गौके लिये उनका विश्वामित्रसे चिरकालतक युद्ध होता रहा। । सुरधेनु नन्दिनी
कभी बाँधी नहीं जाती थी। उसे जब भ्रमण करनेकी इच्छा होती तो वनमें जाकर
घूम-घाम आती ।। एक दिन वह आश्रमसे भ्रमण करनेके लिये कुछ दूर निकल गयी ।
वहाँ एक बड़ा गड़ा था। उस गड्की गहराईका पता नहीं लगता था। नन्दिनी उस
जलाशयके तटपर चर रही थी। उसी समय पैर फिसलनेसे वह गड्के जलमें गिर पड़ी।
सायंकालका समय था । प्रतिदिन नन्दिनी सूर्यास्त होनेके पहले ही आश्रममें पहुँच
जाया करती थी। उस दिन वह रात हो जानेपर भी नहीं आयी तो महर्षि वसिष्ठ
चिन्तित हो गये और वे उसे ढूँढ़नेके लिये निकल पड़े। ऊबड़-खाबड़ भूमिमें खोजते
हुए वे उसी गड्के समीप पहुँचे। उसमेंसे उसकी करुण आवाज सुनकर मुनिको
नन्दिनीके गिर जानेका पता लग गया। । महर्षि वसिष्ठने उसी समय सरस्वती
नदीका स्मरण किया और उनकी प्रार्थनासे सरस्वतीने अपने निर्मल जलसे उस
गर्तको पूरा भर दिया। नन्दिनी झट बाहर आ गयी और महर्षिके साथ आश्रमको
चली आयी। परोपकारी वसिष्ठने सोचा कि इस महागर्तका रहना जीवोंके लिये बहुत
हानिकर है और अनेक जीव-जन्तुओंके इस विवरमें गिरकर मर जानेका भय है,
इसलिये इसको भर देना परम आवश्यक है।
जाया करती थी। उस दिन वह रात हो जानेपर भी नहीं आयी तो महर्षि वसिष्ठ
चिन्तित हो गये और वे उसे ढूँढ़नेके लिये निकल पड़े। ऊबड़-खाबड़ भूमिमें खोजते
हुए वे उसी गड्के समीप पहुँचे। उसमेंसे उसकी करुण आवाज सुनकर मुनिको
नन्दिनीके गिर जानेका पता लग गया। । महर्षि वसिष्ठने उसी समय सरस्वती
नदीका स्मरण किया और उनकी प्रार्थनासे सरस्वतीने अपने निर्मल जलसे उस
गर्तको पूरा भर दिया। नन्दिनी झट बाहर आ गयी और महर्षिके साथ आश्रमको
चली आयी। परोपकारी वसिष्ठने सोचा कि इस महागर्तका रहना जीवोंके लिये बहुत
हानिकर है और अनेक जीव-जन्तुओंके इस विवरमें गिरकर मर जानेका भय है,
इसलिये इसको भर देना परम आवश्यक है।
इस विचारसे वे पर्वतराज हिमालयके यहाँ गये । हिमालयको महर्षिके आगमनसे
बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने पाद्य, अर्थ्य आदि सत्कारसे उनका प्रेमपूर्वक स्वागत किया
बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने पाद्य, अर्थ्य आदि सत्कारसे उनका प्रेमपूर्वक स्वागत किया
कारापापातना ॐ और कहने लगे कि 'हे मुनिश्रेष्ठ ! आज इन पवित्र चरणको से रजके स्पर्शसे
यह देश पवित्र हो गया और मेरा जीवन सफल प हो गया। देवोंके भी परम
पूज्य आप-जैसे महर्षियोंका र आगमन साधारण भाग्यसे नहीं होता।
मेरे योग्य सेवाका य आदेश कीजिये। आप-जैसे महर्षियों एवं पुण्यात्माओंकी
ध सेवामें मेरा सभी कुछ समर्पित है।' व महर्षि वसिष्ठने उनके नम्र वचन सुनकर
प्रसन्न होते हुए * उस गर्तकी बातें उन्हें बतलायीं और किसी पर्वतद्वारा उस
ॐ गर्तको भर देनेके लिये कहा। इसपर हिमालयने कहा कि 'मैं 7 तो पर्वत
भेजनेके लिये तैयार हैं, पर उसके वहाँतक जानेका ने उपाय क्या है?
पहले तो पर्वतोंके पक्ष थे और वे जहाँ चाहते
यह देश पवित्र हो गया और मेरा जीवन सफल प हो गया। देवोंके भी परम
पूज्य आप-जैसे महर्षियोंका र आगमन साधारण भाग्यसे नहीं होता।
मेरे योग्य सेवाका य आदेश कीजिये। आप-जैसे महर्षियों एवं पुण्यात्माओंकी
ध सेवामें मेरा सभी कुछ समर्पित है।' व महर्षि वसिष्ठने उनके नम्र वचन सुनकर
प्रसन्न होते हुए * उस गर्तकी बातें उन्हें बतलायीं और किसी पर्वतद्वारा उस
ॐ गर्तको भर देनेके लिये कहा। इसपर हिमालयने कहा कि 'मैं 7 तो पर्वत
भेजनेके लिये तैयार हैं, पर उसके वहाँतक जानेका ने उपाय क्या है?
पहले तो पर्वतोंके पक्ष थे और वे जहाँ चाहते
थे, उड़कर चले जाते थे, पर अब तो इन्द्रने उनके पक्षको ॥ काटकर उन्हें अचल कर दिया है,
जिससे वे कहीं नहीं आ-जा
जिससे वे कहीं नहीं आ-जा
सकते । ऐसी अवस्थामें यहाँसे पर्वतका पहुँचना असम्भव है।
' 5 वसिष्ठने कहा-'हे पर्वतोत्तम ! आपका कहना तो ठीक
' 5 वसिष्ठने कहा-'हे पर्वतोत्तम ! आपका कहना तो ठीक
है, पर एक उपायसे काम चल सकता है। वह यह कि आपके नन्दिवर्धन नामक
पुत्रका अर्बुद नामवाला एक मित्र है, उसमें उड़नेकी शक्ति है। वह यदि चाहे तो
नन्दिवर्धनको क्षणभरमें मेरे आश्रमके समीप पहुँचा देगा। यदि मुझपर आपकी
श्रद्धा हो तो बिना किसी प्रकारके दुःख माने उसे वहाँ भेज दीजिये।
पुत्रका अर्बुद नामवाला एक मित्र है, उसमें उड़नेकी शक्ति है। वह यदि चाहे तो
नन्दिवर्धनको क्षणभरमें मेरे आश्रमके समीप पहुँचा देगा। यदि मुझपर आपकी
श्रद्धा हो तो बिना किसी प्रकारके दुःख माने उसे वहाँ भेज दीजिये।
हिमालय बड़े संकटमें पड़ गये । उनको एक पुत्र मैनाक पक्षच्छेदके भयसे
सागरमें छिपा बैठा था। दूसरेको वसिष्ठ लेने आये। पुत्रोंके वियोगमें जीवन किस
प्रकार सुखसे बीतेगा, उन्हें इसी बातकी चिन्ता थी। परंतु इसीके साथ-साथ उन्हें
इसका भी भय था कि कहीं वसिष्ठजी प्रतिज्ञाभङ्गसे कुपित होकर शाप न दे दें।
उन्होंने पुत्रवियोगको ब्राह्मण-शापसे अच्छा समझकर नन्दिवर्धनको वसिष्ठ
ऋषिके आश्रममें जानेका आदेश दे दिया। । नन्दिवर्धनने विनयपूर्वक अपने पितासे
कहापिताजी ! वह देश तो बहुत ही बुरा है। वहाँ पलाश, खैर, धव, सेमर आदि जितने
वृक्ष हैं, उनमें न सुगन्धित पुष्प हैं और न मधुर फल ही होते हैं। भयंकर कोल,
भील आदि दुष्ट जातियाँ ही उस प्रान्तमें निवास करती हैं। वहाँ कोई नदी भी नहीं
बहती, जिससे उस देशमें रमणीयता आ सके। सबसे
सागरमें छिपा बैठा था। दूसरेको वसिष्ठ लेने आये। पुत्रोंके वियोगमें जीवन किस
प्रकार सुखसे बीतेगा, उन्हें इसी बातकी चिन्ता थी। परंतु इसीके साथ-साथ उन्हें
इसका भी भय था कि कहीं वसिष्ठजी प्रतिज्ञाभङ्गसे कुपित होकर शाप न दे दें।
उन्होंने पुत्रवियोगको ब्राह्मण-शापसे अच्छा समझकर नन्दिवर्धनको वसिष्ठ
ऋषिके आश्रममें जानेका आदेश दे दिया। । नन्दिवर्धनने विनयपूर्वक अपने पितासे
कहापिताजी ! वह देश तो बहुत ही बुरा है। वहाँ पलाश, खैर, धव, सेमर आदि जितने
वृक्ष हैं, उनमें न सुगन्धित पुष्प हैं और न मधुर फल ही होते हैं। भयंकर कोल,
भील आदि दुष्ट जातियाँ ही उस प्रान्तमें निवास करती हैं। वहाँ कोई नदी भी नहीं
बहती, जिससे उस देशमें रमणीयता आ सके। सबसे
टसरी जगह जानेमें बड़ा कष्ट होगा। अतएव आप हमें त अपनी ही शरणमें रखिये।
वसिष्ठजीने कहा-'नन्दिवर्धन ! तुम वहाँकी कुछ भी ना मत करो। तुम्हारे शिखरपर
मैं नित्य वयं निवासगा। विमल सलिलसे लहराती हुई नदियाँ बुलाऊँगा।
जिससे मनोहर पत्र, पुष्प और फलोंसे परिपूर्ण वृक्षोंसे उसकी अलौकिक शोभा
हो जायगी। मनोहर कलरव करनेवाले असंख्य पक्षियोंसे उसकी रमणीयता देखते ही
बनेगी। उस समय नाना प्रकारके जन्तु आकर उस देशमें निवास करने लगेंगे। इन सबके
अतिरिक्त मैं अपनी तपस्याके बलसे भगवान् शंकरको प्रतिष्ठित कर उस प्रदेशका इतना
महत्त्व बढ़ा दूंगा कि पृथिवीके सभी प्रान्तोंसे सहस्रोंकी संख्यामें लोग वहाँ आकर अपना
जन्म सफल करेंगे। वहाँ सभी देवताओंका वास होगा।' | मुनिके वचन सुनकर नन्दिवर्धनको
बड़ी प्रसन्नता हुई और वह अर्बुदकी सहायतासे वसिष्ठजीके साथ उनके आश्रममें जा पहुँचा।
अर्बुदाचलने नन्दिवर्धनको उस गर्तमें छोड़ दिया और स्वयं भी वहाँ ही रह गया। उन दोनों
पर्वतोंपर वसिष्ठजी बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे कि तुम लोगोंको जो वर माँगना हो
माँग लो, मैं बहुत प्रसन्न हूँ।अर्बुदाचलने कहा कि ‘महर्षे ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं
तो यह वर दीजिये कि मेरे इस निर्मल सलिलसे परिपूर्ण झरनेकी ख्याति संसारभरमें
नागतीर्थके नामसे हो जाय । इसमें स्नान करनेसे मनुष्यको परम धाम मिले।
यदि वन्ध्या स्त्री भी इसमें स्नान कर ले तो उसे पुत्र प्राप्त हो जाय।'
मैं नित्य वयं निवासगा। विमल सलिलसे लहराती हुई नदियाँ बुलाऊँगा।
जिससे मनोहर पत्र, पुष्प और फलोंसे परिपूर्ण वृक्षोंसे उसकी अलौकिक शोभा
हो जायगी। मनोहर कलरव करनेवाले असंख्य पक्षियोंसे उसकी रमणीयता देखते ही
बनेगी। उस समय नाना प्रकारके जन्तु आकर उस देशमें निवास करने लगेंगे। इन सबके
अतिरिक्त मैं अपनी तपस्याके बलसे भगवान् शंकरको प्रतिष्ठित कर उस प्रदेशका इतना
महत्त्व बढ़ा दूंगा कि पृथिवीके सभी प्रान्तोंसे सहस्रोंकी संख्यामें लोग वहाँ आकर अपना
जन्म सफल करेंगे। वहाँ सभी देवताओंका वास होगा।' | मुनिके वचन सुनकर नन्दिवर्धनको
बड़ी प्रसन्नता हुई और वह अर्बुदकी सहायतासे वसिष्ठजीके साथ उनके आश्रममें जा पहुँचा।
अर्बुदाचलने नन्दिवर्धनको उस गर्तमें छोड़ दिया और स्वयं भी वहाँ ही रह गया। उन दोनों
पर्वतोंपर वसिष्ठजी बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे कि तुम लोगोंको जो वर माँगना हो
माँग लो, मैं बहुत प्रसन्न हूँ।अर्बुदाचलने कहा कि ‘महर्षे ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं
तो यह वर दीजिये कि मेरे इस निर्मल सलिलसे परिपूर्ण झरनेकी ख्याति संसारभरमें
नागतीर्थके नामसे हो जाय । इसमें स्नान करनेसे मनुष्यको परम धाम मिले।
यदि वन्ध्या स्त्री भी इसमें स्नान कर ले तो उसे पुत्र प्राप्त हो जाय।'
वसिष्ठजीने प्रसन्नतापूर्वक ‘ऐसा ही होगा' यह कहा। तदनन्तर नन्दिवर्धनने
वर माँगा कि आप सर्वदा यहाँ निवास करे और इस स्थानका ‘अर्बुद' यह नाम प्रसिद्ध हो ।
वसिष्ठजीने इन दोनों वरोंको देकर उसी पर्वतपर अपना स्थायी
वर माँगा कि आप सर्वदा यहाँ निवास करे और इस स्थानका ‘अर्बुद' यह नाम प्रसिद्ध हो ।
वसिष्ठजीने इन दोनों वरोंको देकर उसी पर्वतपर अपना स्थायी
तपस्याके प्रभावसे वे गोमती नदीको वहाँ ले आये, जिसमें स्नान करनेसे घोर पाप
करनेवाला भी मनुष्य स्वर्गलोकको प्राप्त होता है। माघके महीनेमें मनुष्य इसमें स्नानकर
जितने तिलोंका दान करता है, उतने वर्षतक स्वर्गमें अलौकिक सुख भोगता है।
उस स्थानका इतना सौन्दर्य और माहात्म्य बढ़ानेपर भी वसिष्ठजीको संतोष नहीं हुआ और
दयासागर भगवान् शिवके निवासके बिना वह प्रान्त सूना-सा प्रतीत होता था। जिस देशमें
भगवान्का मन्दिर न हो, वह कितना भी सुन्दर क्यों न हो, कुदेश ही है। इसीलिये वसिष्ठजीने
महादेवजीकी आराधनामें दुष्कर तप करना प्रारम्भ कर दिया। सौ वर्षोंतक उन्होंने केवल
फलोंका आहार किया। दो सौ वर्षतक केवल सूखे पत्ते खाकर रहे । पाँच सौ वर्षतक केवल
जल पीकर बिताये और एक हजार वर्षतक केवल हवा पीकर भगवान्की
दयासागर भगवान् शिवके निवासके बिना वह प्रान्त सूना-सा प्रतीत होता था। जिस देशमें
भगवान्का मन्दिर न हो, वह कितना भी सुन्दर क्यों न हो, कुदेश ही है। इसीलिये वसिष्ठजीने
महादेवजीकी आराधनामें दुष्कर तप करना प्रारम्भ कर दिया। सौ वर्षोंतक उन्होंने केवल
फलोंका आहार किया। दो सौ वर्षतक केवल सूखे पत्ते खाकर रहे । पाँच सौ वर्षतक केवल
जल पीकर बिताये और एक हजार वर्षतक केवल हवा पीकर भगवान्की
आराधना करते रहे। तब भगवान् शंकर उनके ऊपर प्रसन्न हुए। उस समय पर्वतको
भेदकर उनके सामने एक सुन्दर परम सुन्दर शिवलिङ्ग' प्रकट हुआ। उसे देखकर
वसिष्ठजीको बड़ा आश्चर्य हुआ और वे अनेक प्रकारसे उनकी स्तुति करने लगे।
भेदकर उनके सामने एक सुन्दर परम सुन्दर शिवलिङ्ग' प्रकट हुआ। उसे देखकर
वसिष्ठजीको बड़ा आश्चर्य हुआ और वे अनेक प्रकारसे उनकी स्तुति करने लगे।
अनन्तर उसी लिङ्गमेंसे यह वाणी निकली कि ‘हे मुने ! तुम्हारे | मनकी
सब बातें मुझे ज्ञात हैं। तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण करनेके | लिये आजसे मैं सदा
इस लिङ्गमें निवास करूंगा। इसके | पूजनसे मनुष्योंको सब प्रकारके सुख
प्राप्त होंगे। मेरी | प्रसन्नताके लिये इन्द्रके द्वारा भेजी गयी इन त्रैलोक्य-पावनी |
मन्दाकिनीमें स्नान कर जो इस अचलेश्वर नामक लिङ्गका दर्शन करेगा,
वह जरा और मरणसे रहित परमपदको प्राप्त होगा।'
सब बातें मुझे ज्ञात हैं। तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण करनेके | लिये आजसे मैं सदा
इस लिङ्गमें निवास करूंगा। इसके | पूजनसे मनुष्योंको सब प्रकारके सुख
प्राप्त होंगे। मेरी | प्रसन्नताके लिये इन्द्रके द्वारा भेजी गयी इन त्रैलोक्य-पावनी |
मन्दाकिनीमें स्नान कर जो इस अचलेश्वर नामक लिङ्गका दर्शन करेगा,
वह जरा और मरणसे रहित परमपदको प्राप्त होगा।'
इतना वरदान देकर भगवान् शिव अन्तर्धान हो गये और
वसिष्ठजी भगवान् शंकरके अनुग्रहसे अत्यन्त प्रसन्न होकर |
अनेक तीर्थों और देवोंको वहाँ ले आये।
वसिष्ठजी भगवान् शंकरके अनुग्रहसे अत्यन्त प्रसन्न होकर |
अनेक तीर्थों और देवोंको वहाँ ले आये।
Interesting story !!
ReplyDeleteThanks for inspiring me.
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