महर्षि दुर्वासा Maharishi Durvasa
महर्षि दुर्वासा
महर्षि दुर्वासा अत्रिमुनिके पुत्ररूपमें भगवान् शंकरके अंशसे उत्पन्न हुए थे।
अतः ये रुद्रावतार नामसे भी प्रसिद्ध हैं। प अपने परमाराध्य भगवान् शंकरमें
इनकी विशेष भक्ति थी । ये भस्म एवं रुद्राक्ष धारण किया करते थे।
इनका स्वभाव अत्यन्त ? उग्र था। यद्यपि उग्र स्वभावके कारण इनके
शापसे सभी भयभीत रहते थे तथापि इनका क्रोध भी प्राणियोंके परम
कल्याणके लिये ही होता रहा है।
एक समय महर्षि दुर्वासा समस्त भूमण्डलका भ्रमण करते हुए पितृलोकमें जा पहुँचे ।
वे सर्वाङ्गमें भस्म रमाये एवं रुद्राक्ष धारण किये हुए थे ।
हृदयमें पराम्बा भगवती पार्वतीका ध्यान और मुखसे–‘जय पार्वती हर'
का उच्चारण करते हुए कमण्डलु तथा त्रिशूल लिये दुर्वासामुनिने
वहाँ अपने पितरोंका दर्शन किया। इसी समय उनके कानों में
करुण-क्रन्दन सुनायी पड़ा। वे पापियोंके हाहाकारमय भीषण
रुदनको सुनकर कुम्भीपाक, रौरव नरक आदि स्थानोंको
देखनेके लिये दौड़ पड़े। वहाँ पहुँचकर उन्होंने वहाँके अधिकारियोंसे
पूछा‘रक्षको ! यह करुण-क्रन्दन किनका है ? ये इतनी यातना क्यों
सह रहे हैं?' उन्होंने उत्तर दिया-‘मुने ! यह संयमनीपुरीका कुम्भीपाक
नामक नरक है। यहाँ वे ही लोग आकर कष्ट भोगते हैं,
जो शिव, विष्णु, देवी, सूर्य तथा गणेशके निन्दक हैं और
जो वेद-पुराणकी निन्दा करते हैं, ब्राह्मणोंके द्रोही हैं।
और माता, पिता, गुरु तथा श्रेष्ठ जनोंका अनादर करते हैं,
Maharishi Durvasa
Maharishi Durvas Atriumikeya was born as a son of Lord Shankar.
Therefore, this is also famous by the name of Rudravatar.
His special devotion was in his supreme God Shankar.
They used to consume bread and Rudraksha.
Their nature is very much? Was furious. Although
due to the fierce nature of their curse, all of them
were scared, but their anger was also being done for
the ultimate welfare of the creatures.
Once upon a time, Maharishi Durvas traveled across the
entire world to reach Patrilok. They used to be consumed
by all and wearing Rudraksha. In the heart, Prahlada Bhagwati,
Parvatikka meditation and mukse-jaj, 'Jai Parvati Har',
while speaking the words 'Kandendu' and Trishul,
Durvasamuni saw the presence of their ancestors.
At this time, Karan-Kandan was heard in his ears.
He rushed to listen to the horrific horrors of sinners, to
see places like Kumbhakak, Raurav hell and others.
When he reached there he asked the officials there,
'Guard! Who is this Karun-Kundan? Why are they
suffering so much torture? ' They replied - 'Money!
This is a hell called abstinence from Kumbhakak.
Here people come and suffer only, who are condemned
by Shiva, Vishnu, Goddess, Sun and Ganesha and those
who condemn Veda-Puran, are enemies of Brahmins.
And disrespect mother, father, guru and best people
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