Indra curse of bhraman death.- Indra doing Shiv pooja or Mensuration of womens
देवराज इन्द्रका इन्द्रके द्वारा अपने पुत्र विश्वरूपका वध सुनकर
महर्षि इन त्वष्टा अत्यन्त दुःखित और कुपित हुए। उन्होंने परम
दारुण तप पी करके ब्रह्माको प्रसन्न किया और देवोंको भयभीत
करनेवाला श पुत्र माँगा। उनके वरदानसे वृत्र नामका परम प्रतापी
पुत्र उत्पन्न दै हुआ। पिताकी आज्ञाके अनुसार वृत्र इन्द्रसे बदला
लेनेके भ लिये घोर तपस्या करने लगा। उसकी घोर तपस्या देखकर
इन्द्रको बहुत भय हुआ और उन्होंने दधीचि ऋषिकी
महर्षि इन त्वष्टा अत्यन्त दुःखित और कुपित हुए। उन्होंने परम
दारुण तप पी करके ब्रह्माको प्रसन्न किया और देवोंको भयभीत
करनेवाला श पुत्र माँगा। उनके वरदानसे वृत्र नामका परम प्रतापी
पुत्र उत्पन्न दै हुआ। पिताकी आज्ञाके अनुसार वृत्र इन्द्रसे बदला
लेनेके भ लिये घोर तपस्या करने लगा। उसकी घोर तपस्या देखकर
इन्द्रको बहुत भय हुआ और उन्होंने दधीचि ऋषिकी
अस्थियोंसे बने हुए वज्रसे उसे मार डाला।। | वृत्र ब्राह्मणको मारकर
ज्यों ही इन्द्र चलने लगे, त्यों ही त ब्रह्महत्याने उनका पीछा किया।
जहाँ-जहाँ इन्द्र जाते, वहाँ-वहाँ उनके पीछे वह हत्या भी जाती ।
ब्रह्महत्या, सुरापान, चोरी, गुरु-पत्नी-गमन एवं विश्वासघात—ये महापातक हैं,
इनसे बचना कठिन है।परम दुःखित देवराज इन्द्रासन और इन्द्राणीका
परित्यागकर तप करनेके लिये चले। वे अनेक तीर्थ, मन्दिर, समुद्र, नदी,
तडाग आदिमें गये, पर उस हत्यासे उन्हें मुक्ति नहीं मिली। अन्तमें रेवा-क्षेत्रमें
पहुँचे और वहाँ परम कारुणिक भगवान् शंकरकी आराधना करने लगे।
उन्होंने कृच्छ्चान्द्रायण आदि अनेक दुष्कर व्रत किये। वे ग्रीष्म-ऋतुमें
पञ्चाग्नि तापते थे, वर्षामें खुले मैदानमें बैठे भीगते रहते और शीतकालमें
भीगे कपड़े पहने हुए भगवान्की आराधना किया करते। इस प्रकार उग्र तप
करते-करते जब दस हजार वर्ष बीत गये, तब भगवान् शिव प्रसन्न होकर प्रकट
हुए। उसी समय समस्त देवता और ऋषि भी वहाँ आ पहुँचे। तत्पश्चात् बृहस्पतिने
देवताओं और ऋषियोंसे कहा-‘आप लोगोंकी ही आज्ञासे इन्दने वत्रासुरको मारा था।
उसीके कारण सम्पूर्ण जगतमें । शान्ति न मिल सकी ।
ज्यों ही इन्द्र चलने लगे, त्यों ही त ब्रह्महत्याने उनका पीछा किया।
जहाँ-जहाँ इन्द्र जाते, वहाँ-वहाँ उनके पीछे वह हत्या भी जाती ।
ब्रह्महत्या, सुरापान, चोरी, गुरु-पत्नी-गमन एवं विश्वासघात—ये महापातक हैं,
इनसे बचना कठिन है।परम दुःखित देवराज इन्द्रासन और इन्द्राणीका
परित्यागकर तप करनेके लिये चले। वे अनेक तीर्थ, मन्दिर, समुद्र, नदी,
तडाग आदिमें गये, पर उस हत्यासे उन्हें मुक्ति नहीं मिली। अन्तमें रेवा-क्षेत्रमें
पहुँचे और वहाँ परम कारुणिक भगवान् शंकरकी आराधना करने लगे।
उन्होंने कृच्छ्चान्द्रायण आदि अनेक दुष्कर व्रत किये। वे ग्रीष्म-ऋतुमें
पञ्चाग्नि तापते थे, वर्षामें खुले मैदानमें बैठे भीगते रहते और शीतकालमें
भीगे कपड़े पहने हुए भगवान्की आराधना किया करते। इस प्रकार उग्र तप
करते-करते जब दस हजार वर्ष बीत गये, तब भगवान् शिव प्रसन्न होकर प्रकट
हुए। उसी समय समस्त देवता और ऋषि भी वहाँ आ पहुँचे। तत्पश्चात् बृहस्पतिने
देवताओं और ऋषियोंसे कहा-‘आप लोगोंकी ही आज्ञासे इन्दने वत्रासुरको मारा था।
उसीके कारण सम्पूर्ण जगतमें । शान्ति न मिल सकी ।
इन्द्रतीर्थे तु यः स्नात्वा तर्पयेत् पितृदेवताः ।।
महापातकयुक्तोऽपि मुच्यते सर्वपातकैः ॥
इन्द्रतीर्थ तु यः स्नात्वा पूजयेत् परमेश्वरम्।।
महापातकयुक्तोऽपि मुच्यते सर्वपातकैः ॥
इन्द्रतीर्थ तु यः स्नात्वा पूजयेत् परमेश्वरम्।।
हे देवदेव उमापते ! महापातकसे छुटकारा प भगवान् शंकरकी
आज्ञासे ब्रह्माजीने उस ब्रह्महत्याको -
आज्ञासे ब्रह्माजीने उस ब्रह्महत्याको -
या। एक भाग नदीमें, दूसरा पृथिवीमें, तीस जला स्त्रीमें और
चौथा शूद्र-सेवक ब्राह्मणमें।
चौथा शूद्र-सेवक ब्राह्मणमें।
- पृथ्वी
- महासागर
- पेड़
- महिलाएं
यहां चर्चा की गईं, वैदिक देवताओं की एक ऐसी पवित्र रचना महिलाएं भी
थीं, इसलिए महिला मासिक धर्म चक्र वास्तव में इंद्र का अभिशाप था और
तब से उन्हें मंदिरों या पवित्र तीर्थयात्राओं में जाने से मना किया जाता है ।
महिलाओं को अपने पाप के इंद्र गुजरने वाले हिस्से ने मासिक धर्म चक्र के
दौरान उन्हें अशुद्ध बना दिया। महिलाओं के महत्व के बारे में एक और बात
यह है कि, भगवान के सामने जमीन पर ऊपरी धड़ के साथ झुकने की परंपरा है
लेकिन महिलाओं को इस तरह के कृतज्ञता की अनुमति नहीं है। कारण गरिमा
और सम्मान प्रदान करना है: महिला के गर्भ को बहुत पवित्र और पवित्र माना
जाता है और भगवान के सामने भी पूरी तरह से जमीन को छूकर उस गर्भ का
अपमान है, इसलिए महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं है,
थीं, इसलिए महिला मासिक धर्म चक्र वास्तव में इंद्र का अभिशाप था और
तब से उन्हें मंदिरों या पवित्र तीर्थयात्राओं में जाने से मना किया जाता है ।
महिलाओं को अपने पाप के इंद्र गुजरने वाले हिस्से ने मासिक धर्म चक्र के
दौरान उन्हें अशुद्ध बना दिया। महिलाओं के महत्व के बारे में एक और बात
यह है कि, भगवान के सामने जमीन पर ऊपरी धड़ के साथ झुकने की परंपरा है
लेकिन महिलाओं को इस तरह के कृतज्ञता की अनुमति नहीं है। कारण गरिमा
और सम्मान प्रदान करना है: महिला के गर्भ को बहुत पवित्र और पवित्र माना
जाता है और भगवान के सामने भी पूरी तरह से जमीन को छूकर उस गर्भ का
अपमान है, इसलिए महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं है,
अंत में आंशिक रूप से अवशोषण इंद्र के पाप की कर्मिक प्रतिक्रियाएं
• पृथ्वी पर क्रैक • महासागर में लहरें • पेड़ों से निकलने वाली दूध • महिलाओं
में मासिक धर्म चक्र
में मासिक धर्म चक्र
इंद्र से किए गए किसी भी नुकसान से प्रजातियों, प्राणियों के सूखे और क्षरण की
श्रृंखला हो सकती है। जैसा कि पहले बताया गया है। इंद्र युद्ध, तूफान और आकाश
का देवता था। इसलिए मानव जाति और प्रजातियों की समृद्धि और निरंतरता के लिए
पवित्र प्राणियों के बीच पाप का वितरण किया गया था।
श्रृंखला हो सकती है। जैसा कि पहले बताया गया है। इंद्र युद्ध, तूफान और आकाश
का देवता था। इसलिए मानव जाति और प्रजातियों की समृद्धि और निरंतरता के लिए
पवित्र प्राणियों के बीच पाप का वितरण किया गया था।
इस प्रक उस हत्यासे मुक्त करके भगवान् शंकर इन्द्रसे बोले तम्हारे ऊपर अत्यन्त प्रसन्न
हूँ, वर माँगो ।' इन्द्रने हाथ जोड प्रार्थना की कि हे ‘परमेश्वर ! मैं इस तीर्थमें शिवलिङ्ग
स्थापित करता हूँ, आप उसमें सदा विराजमान रहें और अपनी आराधना करनेवाले भक्तोंको
महापातकोंसे मुक्त किया करें। इस प्रार्थनाको स्वीकारंकर भगवान् सदाशिव अन्तर्हित हो गये।
हूँ, वर माँगो ।' इन्द्रने हाथ जोड प्रार्थना की कि हे ‘परमेश्वर ! मैं इस तीर्थमें शिवलिङ्ग
स्थापित करता हूँ, आप उसमें सदा विराजमान रहें और अपनी आराधना करनेवाले भक्तोंको
महापातकोंसे मुक्त किया करें। इस प्रार्थनाको स्वीकारंकर भगवान् सदाशिव अन्तर्हित हो गये।
और देवराजने विधिविहित रीतिसे नर्मदाके दक्षिणी तटपर शिवलिङ्गका संस्थापन किया।
इस इन्द्रतीर्थमें स्नान करने तथा इन्द्रके द्वारा संस्थापित
‘इन्द्रेश्वर' नामक शिवलिङ्गकी पूजा करनेसे महापातकी भी समस्त
पातकोंसे मुक्त हो जाता है और महान् अश्वमेध यज्ञके सम्पूर्ण फलको प्राप्त
कर लेता है। इसका माहात्म्य स्कन्दपुराणमें इस प्रकार दिया गया है
इस इन्द्रतीर्थमें स्नान करने तथा इन्द्रके द्वारा संस्थापित
‘इन्द्रेश्वर' नामक शिवलिङ्गकी पूजा करनेसे महापातकी भी समस्त
पातकोंसे मुक्त हो जाता है और महान् अश्वमेध यज्ञके सम्पूर्ण फलको प्राप्त
कर लेता है। इसका माहात्म्य स्कन्दपुराणमें इस प्रकार दिया गया है
Maharishi These Vastans were utterly sorrowful and angry when
Devraj Indraka Indraqe heard the killing of his son Vishwarupa.
He pleased Brahma after drinking the supreme alcoholic beverage
and asked the son who fears the gods. His grandfather, the eldest
son of his elder brother, was born in the house. According to the
father's command, the prince began to perform austerity for taking
revenge from the senses. Seeing his extreme austerity = Indraq
was very afraid and herishi and
Devraj Indraka Indraqe heard the killing of his son Vishwarupa.
He pleased Brahma after drinking the supreme alcoholic beverage
and asked the son who fears the gods. His grandfather, the eldest
son of his elder brother, was born in the house. According to the
father's command, the prince began to perform austerity for taking
revenge from the senses. Seeing his extreme austerity = Indraq
was very afraid and herishi and
was killed by the rashtriyathe osteoporosis. | After breaking the
Brahmin, the Indra began to move, only then Brahma Mahatma
followed them. Wherever Indra goes, wherever they go, they also
murder there. Brahma, hatred, theft, guru-wife-pass and betrayal-
these are mahatmas, it is difficult to avoid them.
Brahmin, the Indra began to move, only then Brahma Mahatma
followed them. Wherever Indra goes, wherever they go, they also
murder there. Brahma, hatred, theft, guru-wife-pass and betrayal-
these are mahatmas, it is difficult to avoid them.
| The great tragedy Devraj left the Indra-Sena and Indranika to go
to the place of worship. They went to many shrines, temples, seas,
rivers, tadag etc. but they did not get salvation. In the end, reached
the Reva-area and there worshiped Lord Shankar, the supreme God.
He made many cumbersome vows like Kachchachandraanan etc.
They used to heat fire in the summer season, while sitting in the
open field in the rainy season and worshiping Goddess, wearing
sage clothes in the winter. Thus, when ten thousand years have
passed, then Lord Shiva is pleased and pleased. At that time all the
Gods and the sage also came there. Afterwards, Jupiter said to the
deities and the sages - 'You hadIndrapeople's command killedVatrasura
by the. Due to him the whole world. Peace could not be found.
to the place of worship. They went to many shrines, temples, seas,
rivers, tadag etc. but they did not get salvation. In the end, reached
the Reva-area and there worshiped Lord Shankar, the supreme God.
He made many cumbersome vows like Kachchachandraanan etc.
They used to heat fire in the summer season, while sitting in the
open field in the rainy season and worshiping Goddess, wearing
sage clothes in the winter. Thus, when ten thousand years have
passed, then Lord Shiva is pleased and pleased. At that time all the
Gods and the sage also came there. Afterwards, Jupiter said to the
deities and the sages - 'You hadIndrapeople's command killedVatrasura
by the. Due to him the whole world. Peace could not be found.
Indraitirtha: You are the father of goddess. It is not easy to do so. Indra
Tirtha Tu: Snata Poojayat Godam ..
Tirtha Tu: Snata Poojayat Godam ..
O Goddeva!Lord ShankarBrahma ji avoided Mahapatikas by
saying the's order -the Brahmagadas
saying the's order -the Brahmagadas
or. One part is in river, second in the world, thirty burnt women
and fourth Shudra-servant in
and fourth Shudra-servant in
So pious creations of Gods were -
Earth Ocean
Trees • Women
As discussed here, one such pious creation of Vedic Gods were
women too, so the women's menstrual cycle was actually curse
of Indra and since then they are forbidden from going to temples
or holy pilgrimages. Indra passing portion of his sin to women,
made them impure during menstrual cycle. One more thing about
women's importance is that, there is a tradition to bow down with
upper torso on ground in front of God but women are not allowed
to perform such gratitude. The reason is to offer dignity and respect: woman's womb is considered to be very sacred and pious and by
completely touching the ground even in front of God is an insult to
that womb so women are not allowed to do so,
women too, so the women's menstrual cycle was actually curse
of Indra and since then they are forbidden from going to temples
or holy pilgrimages. Indra passing portion of his sin to women,
made them impure during menstrual cycle. One more thing about
women's importance is that, there is a tradition to bow down with
upper torso on ground in front of God but women are not allowed
to perform such gratitude. The reason is to offer dignity and respect: woman's womb is considered to be very sacred and pious and by
completely touching the ground even in front of God is an insult to
that womb so women are not allowed to do so,
Eventually the absorption of partial Karmic reactions of Indra's sin lead to
• Cracks on Earth • Waves in Ocean • Milk oozing out from Trees •
Menstrual Cycle in Women
Menstrual Cycle in Women
Any harm done to Indra would have led to series of droughts and
decimation of species, beings. As explained before. Indra was the
God of wars, storms, and the heavens. So the distribution of sin
among pious beings was done for the prosperity and continuum
of the mankind and species.
decimation of species, beings. As explained before. Indra was the
God of wars, storms, and the heavens. So the distribution of sin
among pious beings was done for the prosperity and continuum
of the mankind and species.
Brahmins. God Shankar Indre said, 'I am very happy to release
this weapon from that murder.' Indra Hands and Prayer prayed
that 'O Lord! I establish a pilgrimage in this shrine, you will always
remain in it and devote your worshipers to them from Mahapakalas.
By accepting this prayer Lord Sadashiv got involved.
this weapon from that murder.' Indra Hands and Prayer prayed
that 'O Lord! I establish a pilgrimage in this shrine, you will always
remain in it and devote your worshipers to them from Mahapakalas.
By accepting this prayer Lord Sadashiv got involved.
And Devraj installed the Shivlinginga on the southern coast
of Narmada with a lawless manner. Mahapati also gets rid
of all the sins from bathing in this sense and worshiping the
Shivalinga, called 'Indreshwar', established by Indra, and
receives the entire fruit of the great Ashwamedh Yajna.
Its greatness is given in Scandapuraan as follows
of Narmada with a lawless manner. Mahapati also gets rid
of all the sins from bathing in this sense and worshiping the
Shivalinga, called 'Indreshwar', established by Indra, and
receives the entire fruit of the great Ashwamedh Yajna.
Its greatness is given in Scandapuraan as follows
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