Lord Agni Doing Shiv pooja






अग्निदेवपर भगवा एक समय श्रीमहादेवजी अनेकों देवोंके साथ तीर्थयात्रा
करते-करते 'भृगुकछ' नामक तीर्थमें पहुंचे। वहाँ अग्निदेव कठिन तपस्या कर रहे थे।
वे अनेकों रोगोंके कारण वहत दु:खी थे। रोगसे उनकी आँखें पीली पड़ गयी थीं।
रोगोंसे ऊटकारा पानेके लिये वे सैकड़ों वर्षोंसे महेश्वर शिवकी आराधना कर रहे थे।
देवोंने प्रार्थना की कि 'हे देवदेव ! ये अग्निदेव हमलोगोंके मुख हैं, इन्हींके द्वारा
हमलोगोंको हविषके रूपमें भोजन मिलता है। इन्हें इस समय अनेक
रोगोंसे कष्ट हो रहा है। हे प्रभो ! इनका रोग दूरकर आप हम सबकी रक्षा कीजिये।
उस समय व्याघ्राम्बर पहने, सारे शरीर में विभूति रमाये, अनेक सर्पोको देह भरमें
लपेटे, जटाजूटधारी, परम कल्याणकारी शिवजीके दर्शन अग्निदेवने भी किये और
वे उनके दर्शनसे कृतार्थ होकर स्तुति करने लगे।
उनकी भावमयी स्तुतिसे प्रसन्न होकर भगवान् शिवने कहा कि :-
'हे अग्ने ! मैं तुम्हारी तपस्यासे अत्यन्त प्रसन्न हूँ। जो वर माँगना हो, माँग लो।'
ऐसे आनन्दप्रद वचन सुनकर अग्निदेवने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि
“हे विरूपाक्ष ! मैं अनेक रोगोंसे पीड़ित हैं और अनेक कष्टोंका अनुभव कर रहा.

र उनके सभी रोगको हर लिया और
ने ।। 'इस तीर्थ सदा मेरा अश वर्तमान रहेगा । यहाँ खान से 5, कागल तथा क्षय आदि सभी
प्रकारके रोग उसी तरह भाग जायेंगे, जैसे गरुडको देखते ही सर्प भाग जाते है।
पिङ्गलाश अग्निके संस्थापित इन 'पिङ्गलेश्वर' के दर्शनमात्रसे कायिक,
वाचिक और मानसिक सभी तरहके पाप नष्ट हो जायेंगे। इस पावन देवखात
नामक तीर्थमें स्नान, दान आदि जो कुछ भी पुण्य कार्य किया जायगा,

वह अक्षय होगा और उसके अनन्त फल मिलेंगे। भगवान् शंकरका कथन है

वाचिकं मानसं पापं कर्मजं यत् पुरा कृतम् ।
पिङ्गलेश्वरमासाद्य तत्सर्वं विलयं व्रजेत् ।।
तत्र स्नानं च दानं च देवखाते कृतं नृप ।।
अक्षयं तद्भवेत् सर्वमित्येवं शंकरोऽब्रवीत् ।।




Agnidevapaper saffron one time Shri Mahadevji reached pilgrimage in
the holy place called Bhrigookach, doing pilgrimage with many gods.
Agnidha was doing hard penance there. They were sad because of many diseases.
Diseased his eyes were pale; He was worshiping Maheshwar Shiva for hundreds
of years to get his attention from diseases. God prayed that 'Goddev!
These are the faces of people who are fed by us, by which we get food in
the form of all kinds. They are suffering from many diseases at this time.
Oh, Lord ! You protect us all by removing their disease. At that time,
wearing vyghargambhana, Vibhuti Ramaye in whole body, wrapped in
many Sarpoko bodies, Jagatjuktari, Param Kalyankar Shivaji's Darshan Agnidewane
also, and they began to praise him with gratitude from their philosophy.
Being pleased with his celestial praise, Lord Shiva said, 'O fire! I
am very pleased with your penance. Ask for whatever you want, ask for it.
' Upon hearing such pleasantly, Agnivedev joined hands
and requested that "O Lord! I am suffering from many
diseases and experiencing many troubles.
Andtook all their diseases and took them

he. 'This pilgrimage will always be present in my presence.
Here, all kinds of diseases like 5, Kagal and decay etc.
will run away in the same way as the snake escapes after watching
the eagle. In the eyes of these 'pingaleshwar' installed in the
Pingalag firefight, all the sins of the physical, mental, and mental
will be destroyed. Whatever sacred work will be done, bathing,
donations, etc. in this holy shrine called Devakhat,
it will be renewable and will get eternal blessings

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