Love Of Lord Shiva & Lord Ram./ भगवान् शंकरका राम-नामपर स्नेह
Lord SHIVA is very affectionate with the name Ram. There are many stories in our Hindu mythological books, that proofs love of RAM and SHIVA. Here I will try to narrate one of those
interesting stories. I hope you will like it and try to understand the deepness of love that transcends between two souls. Love that exists in form of devotion , between a Lord and a devotee.
Once few people were taking a dead person for the "Final Rites". They were repeating the phrase "Ram name is true and Ram is the only truth" .
("Ram naam satys hain, Satya bolo gatya hain" - Hymn sung by Hindu people ,once a person dies.) When Shiva heard Ram's name, Shiva mind was drawn towards those people. So he got along with them. He was attracted to the Name RAM like a "Bee is attracted to Flowers".
Now the people took the dead person to the cremation ground and burned it . While returning they were not chanting the name of RAM. They were quiet. Shiva was astonished that why people were not chanting the name of "Ram"? Shiva was innocent and thought that there must be some enchantment in that corpse , due to which all these people were taking name of Ram. So he went back and saw that corpse had burnt to ashes. Shiva took the ashes and applied it on his own body and started living there.
Shiva left his whole word just to listen the name of his lord name. Such unselfish and deep love for lord is impossible to find in today's world.
There is word in hindi Raakh which mean Ashes. There is another word Masan in hindi which means Crematorium. When we combine both these word, We get the holy name of lord RAM.
Raakh + Masan = RAM
This is why shiva Loves to stay near Crematorium smearing his body in ashes.
We have another similar story in our old hindu books that show the endless love of Shiva for the name RAM.
There is no 'R' in the name of sati, so Shiva left sati. When she was born in Himachal (one place in India ) her named was Girija. She was great devotee and lover of lord Shiva. She want to marry Shiva in all her birth. She started practicing penance , so that Lord SHIVA become happy and marry her. When she gave up eating dry leaves due to lost in prayer then her name was become 'Aparna'. Both the name of the Girija and Aparna , 'R' came in, lord shiv was pleased and made her betterhalf-Ardhadagini(Airdhadagini-Beloved wife ). Similar he did not accept Ganga . But when Ganga named as 'Bhagirathi', then Shiva accept her and keep her in his hair.
So Name of Lord RAM is very special to lord Shiva.
Shiva is lord of Ramji also the lord Ramji is lord of Shiva
Both are same but still both are different.
भगवान् शंकरका राम-नामपर बहुत स्नेह है। एक बार
कुछ लोग एक मुरदेको श्मशानमें ले जा रहे थे और
राम-नाम सत् है' ऐसा बोल रहे थे। शंकरजीने
राम-नाम सुना तो वे भी उनके साथ हो गये ।
जैसे पैसोंकी बात सुनकर लोभी आदमी उधर खिंच
जाता है, ऐसे ही राम-नाम सुनकर शंकरजीक मन
भी उन लोगोंकी ओर खिंच गया। अब लोगोंने मुरदे
श्मशानमें ले जाकर जला दिया और वहाँसे लौटने लगे।
शंकरजीने देखा तो विचार किया कि बात क्या है? अव कई
आदमी राम-नाम ले ही नहीं रहा है। उनके मनमें आया कि
उस मुरदेमें ही कोई करामात थी, जिसके कारण ये सब लेग
राम-नाम ले रहे थे। अतः उसीके पास जाना चाहिये।
शंकरजीने श्मशानमें जाकर देखा कि वह तो जलकर राख
हे गया है। अतः शंकरजीने उस मुरदेकी राख अपने शरीर
में लगा ली और वहीं रहने लगे ! राख और मसान—दोनोंके
पहले अक्षर लेनेसे ‘राम' हो जाता है ! एक कविने कहा है
रुचिर रकार बिन तज दी सती-सी नार, । कीनी नाहिं रति रुद्र
पायके कलेश को ।। गिरिजा भई है पुनि तप ते अपर्णा तबे,
कीनी अर्धंगा प्यारी लागी गिरिजेश को ॥ विष्नुपदी गंगा तउ
धूर्जटी धरि सीस, भागीरथी भई तब धारी है। अशेष को ।
बार-बार करत रकार व मकार ध्वनि, पूरण है प्यार राम-नाम
पे महेश को । सतीके नाममें 'र' कार अथवा ‘म’ कार नहीं हैं,
इसलिये शंकरजीने सतीका त्याग कर दिया। जब सतीने
हिमाचलके यहाँ जन्म लिया, तब उनका नाम गिरिजा
(पार्वती) हो गया। इतनेपर भी शंकरजी मुझे स्वीकार करेंगे
या नहीं—ऐसा ( सोचकर पार्वतीजी तपस्या करने लगीं ।
जब उन्होंने सूखे पत्ते भी खाने छोड़ दिये, तब उनका
नाम ‘अपर्णा' हो गया। गिरिजा और अपर्णा- दोनों नामोंमें
'र' कार आ गया तो शंकरजी इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने
पार्वतीजीको अपनी अर्धाङ्गिनी बना लिया। इसी तरह
शंकरजीने गङ्गाको स्वीकार नहीं किया। परंतु जब
गङ्गाका नाम ‘भागीरथी' पड़ गया, तब शंकरजीने उनको
अपनी जटामें धारण कर लिया। अतः । भगवान् शंकरका
राम-नाममें विशेष प्रेम है। वे दिन-रात राम-नामका जप करते
रहते हैंतुम्ह पुनि राम राम दिन राती । सादर जपहु अलँग आराती ।।
| (मानस १ । १०८।४) केवल दुनियाके कल्याणके लिये ही
वे राम-नामका जप करते हैं, अपने लिये नहीं।
शंकरके हृदयमें विष्णुका और विष्णुके हृदयमें शंकरका बहुत
अधिक स्नेह है। शिव तामसमूर्ति हैं और विष्णु सत्त्वमूर्ति हैं,
पर एक-दूसरेका ध्यान करनेसे शिव श्वेतवर्णके और विष्णु
श्यामवर्णके हो गये। वैष्णवोंका तिलक (ऊर्ध्वपुण्डू) त्रिशूलका
रूप है और शैवोंका तिलक (त्रिपुण्डू) धनुषका रूप है। अतः
शिव और विष्णुमें भेदबुद्धि नहीं होनी चाहिये
""संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास ।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महँ बास ॥
उभयोः प्रकृतिस्त्वेका प्रत्ययभेदेन भिन्नवद् भाति ।।
कलयति कश्चिन्मूढो हरिहरभेदं विनाशास्त्रम् ॥""
अर्थात् (१) हरि और हर—दोनोंकी प्रकृति | (वास्तविक तत्त्व)
एक ही है, पर निश्चयके भेदसे दोनो | भिन्नकी तरह दीखते हैं।
कुछ मूर्खलोग हरि और हरक पमें अर्थात् भगवान् शंकर रामजीके
सेवक, स्वामी और नौर सखा–तीनों ही हैं।
रामजीकी सेवा करनेके लिये शंकरने व हनुमान्जीका
रूप धारण किया। वानरका रूप उन्होंने इसलिये का धारण किया
कि अपने स्वामीकी सेवा तो करूं, पर उनसे चाहूँ। क कुछ भी नहीं,
क्योंकि वानरको न रोटी चाहिये, न कपड़ा द्ध चाहिये और न
मकान चाहिये। वह जो कुछ भी मिले, उसीसे अपना निर्वाह कर
लेता है। रामजीने पहले रामेश्वर शिवलिङ्गका पूजन किया,
फिर लंकापर चढ़ाई की। अतः भगवान् शंकर रामजीके स्वामी
भी हैं। रामजी कहते हैं‘
""संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास ।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास ।। ""
ReplyDeleteYou have a real ability for writing unique content. I like how you think and the way you represent your views in this article.
Read my blog on SHIV TANDAV STROTRAM