मार्कण्डेयजीपर - Old Spiritual Guru





            मार्कण्डेयजीपर \ Markandeyji


मार्कण्डेयजीपर श्रीभगवान् शंकरकी कृपा पहलेसे ही थी।
पद्मपुराण उत्तरखण्डमें आया है कि इनके पिता मुनि
मृकण्डने अपनी पत्नीके साथ घोर तपस्या करके भगवान्
शिवको प्रसन्न किया था और उन्हींके वरदानसे मार्कण्डेयको
पुत्ररूपमें पाया था। भगवान् शंकरने उसे सोलह वर्षकी ही आयु
उस समय दी थी। अतः मार्कण्डेयकी आयुका सोलहवाँ वर्ष
आरम्भ होनेपर मृकण्डु मुनिका हृदय शोकसे भर गया।
पिताजीको उदास देखकर जब मार्कण्डेयने उदासीका कारण
पूछा, तब मृकण्डने कहा–'बेटा ! भगवान् शंकरने तुम्हें सोलह
वर्षकी ही आयु दी है, उसकी समाप्तिका समय समीप आ पहुँचा है,
इसीसे मुझे शोक हो रहा है।' इसपर मार्कण्डेयने कहा-'पिताजी !
आप शोक न करें। मैं भगवान् शंकरको प्रसन्न करके ऐसा
यत्न करूंगा कि मेरी मृत्यु हो ही नहीं। तदनन्तर माता-पिताकी
आज्ञा लेकर मार्कण्डेयजी दक्षिण समुद्रके तटपर चले गये और
वहाँ विधिपूर्वक शिवलिङ्गकी स्थापना करके आराधना करने
लगे। समयपर 'काल' आ पहुँचा। मार्कण्डेयजीने कालसे कहा-'मैं
शिवजीका मृत्युञ्जय-स्तोत्रसे स्तवन कर रहा हूँ, इसे पूरा कर लें,
तबतक तुम ठहर जाओ ।' कालने कहा-‘ऐसा नहीं हो सकता ।'
तब मार्कण्डेयजीने भगवान् शंकरके बलपर कालको फटकारा ।।
कालने क्रोधमें भरकर ज्यों ही मार्कण्डेयको हठपूर्वक ग्रसना चाहा,
त्यों ही स्वयं महादेवजी उसी लिङ्गसे प्रकट हो गये। हुँकार भरकर
मेघके समान गर्जना करते हुए उन्होंने कालकी छातीमें लात मारी।
मृत्यु देवता उनके चरण-प्रहारसे पीड़ित होकर दूर जा पड़े।
भयानक आकृतिवाले कालको दूर पड़े देख मार्कण्डेयजीने
पुनः इसी स्तोत्रसे भगवान् शंकरजीका स्तवन किया








                                                           Markandeyji


Marcandeyaji was already blessed with
Lord Krishna's grace. Padmapuraan has
come in Uttarakhand that his father Muni
Murinda had pleaded with Lord Shiva for his
extreme austerity and found his friend Merkandeya
in son-in-law. God Shankar gave him sixteen years
of age at that time. Therefore, the birth of the
Markandeya 16th year, the birth of sixteen year
old mother Munikika was full of mourning.
When looking at the sadness of the father,
Markandeye asked the reason for the sadness,
then Muruka said, 'Daughter! Lord Shankar has
given you the age of sixteen years, his deadline has
arrived at the time, I am feeling sorry for that. ' Markandeye
said on this, 'Father! You do not grieve. I will do my
best to please God Shankar and I will not die.
Immediately after ordering the parents, Markandeya
went to the coast of the South Sea and there worshiped
the statue and worshiped there. The 'time' arrived
at the time. Markandeyeji said to Kalas- 'I am commemorating
Shivaji's death, I have done this, till you complete it,
then you should stay.' Kalle said, 'This can not happen.
' Then, Markandeyaji rebuked Chalka after
Lord Shankar. Mahadevji manifested itself in
the same way as he wanted to grind Markandeyeo by
filling in anger. While shouting like a cloud,
he kicked in a chunky chest. The god of death
will suffer from their stages and go away. See
terrible Akritiwale Kalko set off Markndeygine re
corresponding Stotrse God Shankrjika eulogy

| Psalm


| स्तोत्र

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